alka awasthi
नहीं है उपवास मेरा
तुम्हारी लंबी उम्र के लिए
भरोसा है मुझे
अपनी सांसों की डोर पर
कि मजबूत हैं जब तक वो
कुछ नहीं होगा तुम्हें
हाथों की लकीरें
ले आयी हैं जो तुम तक
विधाता की रची ही तो हैं
देखो ना.... शहर में तुम्हारे
उत्तरवाहिनी हैं गंगा भी
हो सवार समय रथ पर
नित्यप्रति
तय कर रहे हैं हम
नया सफर
तपिश तरणि की
जिस रोज न जलाये तुम्हें
समझ लेना मुक्त हो गई मैं
प्रत्येक विभावरी
तब रखूंगी उपवास
ऊँचे नीले वितानों पर ......
वाह ... विश्वास उपवास का ही रूप है
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2501 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद