Friday 21 October 2016

पथिक...




पीर दिखने लगी है
रपटने लगे हैं भाव
अंतस में जम गई काई
अबोले ही.......

दोष नहीं है तुम्हारा
न रोष है नियति पर मुझे
अनचाहा गीत ही सही
बज जाने दो......

न रक्तिम हूं
ना ही तुम्हारा रक्त
पश्चाताप में सही
भस्म हो जाने दो

यायावार हूं
अज्ञानी भी
अक्खड़ हूं
अभिमानी भी
अब
मुझे पथिक हो जाने दो
अब
.. पथिक हो जाने दो

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