Wednesday 19 October 2016

उपवास....

alka awasthi

 नहीं है उपवास मेरा 
तुम्हारी लंबी उम्र के लिए
 भरोसा है मुझे
अपनी सांसों  की डोर पर 
कि  मजबूत हैं जब तक वो
 कुछ नहीं  होगा  तुम्हें

हाथों की लकीरें 
 ले आयी हैं जो तुम तक 
विधाता की रची  ही तो हैं 
 देखो ना....  शहर में तुम्हारे 
उत्तरवाहिनी  हैं  गंगा भी

हो सवार समय रथ  पर
 नित्यप्रति 
 तय कर रहे हैं हम 
नया सफर

 तपिश तरणि  की 
जिस रोज न जलाये तुम्हें
समझ  लेना मुक्त हो गई मैं 

प्रत्येक विभावरी
तब रखूंगी उपवास 
ऊँचे नीले वितानों पर ......




2 comments:

  1. वाह ... विश्वास उपवास का ही रूप है

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2501 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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