Saturday 20 November 2010

सन्नाटा


         उर की अटल गहराइयों में बसे तुम 
         सपनों के हिलोरों संग दे जाते हो कुछ 
         कजरारी आँखों को  


          भावनाओं की गलियों से विचरते 
           तुम्हारे मीठे एहसास 
           दृग के कोरों से 
           धवल स्वरुप लिए 
           गिर जाते हैं 
            टप्प ........

           भींची  पलकें 
          अलकों के साए में 
          श्वेत फाहों से लद जाती हैं 
          नभ के किंचित अवशेष की मानिंद 


           संसृति के अगणित तारों के बीच 
           हर रात 
           रूह को  स्पर्शित करते हैं 
           ना जाने कितने आवरण 
           तुम्हारे नेह के 


           तुम्हारी स्मृतियों के साथ ही 
           छिटक जाती है 
           इक और बूँद 
           तुम्हारी याद की
    
            बस यूं ही मेरा सोचते रहना 
            लगातार - निर्विकार 
            पलक- दीवार- व्योम के उस पार .....

            भोर में ...
            सिन्दूरी अरुणिमा संग 
            दबा लेती हूँ 
            कुछ हिचकियाँ   


           कोशिश रहती है 
           अक्सर , ये मेरी 
           आवाज़ से ,
           सन्नाटा ना जाग जाये कहीं .......


        
         
     

   

Monday 8 November 2010

              ये भरोसा ......     कारगर कितना..!

अमेरिकी  राष्ट्रपति बराक ओबामा को अमेरिका के अख़बारों  में पहले पन्ने पर और न्यूज़ चैनलों  में  बड़ी खबर के रूप में वरीयता  भले ही ना  मिली हो लेकिन हिन्दुस्तानी मीडिया में ओबामा छा गए हैं ! 

क्या करें हमारी फितरत ही कुछ ऐसी  है .....आज भी भारत के किसी पिछडे  क्षेत्र में  धूल उड़ाती हुई  गाड़ियों के काफिले के पीछे नंगे बदन दौड़ते बच्चो को आसानी से देखा जा सकता है ....ये तस्वीर है उस भारत की जिसे   कृषि से जुडी 65 फीसदी आबादी और असंगठित क्षेत्र के कामगारों वाले भारत के रूप मे जाना जाता है !

पटाखों और फुलझड़ियों की धमाकेदार आवाजों के बीच पदार्पण करने वाले ओबामा का इतना शानदार स्वागत हुआ की खुद उन्हें भी कहना पड़ा वाह .......
                     ओबामा  का इतनी बेसब्री से इंतजार  उनसे दिवाली के      तोहफों की उम्मीद के चलते किया जा रहा था लेकिन सब धूल धूसरित हो गया .....ओबामा कुछ देने नहीं बल्कि लेने आयें हैं ......

                 अभी हाल ही मे हुए मध्यावधि चुनाव में पटखनी खाने के बाद ओबामा अमेरिका की जनता को कुछ तोहफा देकर उन्हें खुश करना चाहते हैं , और इसकी पूरी उम्मीद उन्हें भारत से है ! नौ  फ़ीसदी के आस पास की अमेरिकी  बेरोज़गारी दर के आगे भारत की विकास दर लगभग यही आँकड़ा  छू  रही  है |  ओबामा की यात्रा के दौरान होने वाले करारों से अमेरिका के लिए लगभग ५०,०००  नौकरियों का सृजन होगा लेकिन कितने प्रतिशत भारतीय बेरोजगारों की समस्या सुलझेगी ये कोई नहीं जानता | 

                               वैसे अभी तक के छ: राष्ट्रपतियों से अलग हटकर  ओबामा ने अपनी यात्रा की शुरुआत मुंबई से किसी सहानुभूति या श्रद्धांजलि   के चलते नहीं की है बल्कि इसलिए क्योंकि मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है और यहाँ आकर वो अपने व्यापारिक उदेश्यों   का आंकलन भलीभांति कर सकते थे | अमेरिका और भारत के तथाकथित रिश्ते को लेकर घंटो टीवी चैनलों पर विश्लेषण हुआ तमाम कयासबाजियाँ  लगायी गयीं , ओबामा से जुडी  हर खासोआम जानकारियां परोसी गयीं ....और तो और  राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय से मिशेल ने क्या - क्या  खरीदा इसकी सूचना पल- पल पर चैनलों में दी जाती रही | 

                                       
                      ......पूरी दुनिया में आतंक के खिलाफ मुहीम छेड़ने का दम भरने वाले ओबामा के पास पाकिस्तान को दिए जाने वाले  राहत पैकेज के  सवाल का कोई जवाब नहीं है | आजादी के 65 साल पूरे करने वाला भारत जैसा विशाल देश आज भी पाक के हर मुद्दे को लेकर अमेरिका का ही मुह ताकता दिखाई देता है 

,..........हाँ  ये दीगर बात है  कि हैदराबाद हाउस में बराक ओबामा के द्वारा कश्मीर मुद्दे  को लेकर भारत - पाक  वार्ता पर शंका व्यक्त किये जाने के तुरंत बाद ही प्रधानमंत्री  मनमोहन सिंह ने साफगोई से इसका जवाब दिया और कहा की भारत सभी महत्त्वपूर्ण मसलों  पर समाधान चाहता है जिसमे  "के"  यानि कश्मीर का मुद्दा भी शामिल है | ओबामा ने आतंकवाद का मुद्दा उठाया ज़रूर लेकिन सिर्फ अपने कारणों से | पाक को ध्यान में रखकर ही राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ये भी कहा कि पाकिस्तान में स्थिरता भारत के ही हित में है क्योंकि भारत आर्थिक सफलता की ऊँचाइयाँ छू रहा है....यूं तो भारत के पास बात करने के कई मुद्दे थे लेकिन सब अधर में ही लटके रह गए....! ना पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक और लश्कर ए तैयबा के सदस्य  डेविड हेडली का ज़िक्र अहम् रहा और ना ही भोपाल त्रासदी |इसे लेकर ही दिल्ली के जंतर-मंतर  में विरोध प्रदर्शन भी हुआ | हालांकी इस द्विपक्षीय वार्ता के कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं जिससे रक्षा , अनुसन्धान अवं विकास संगठन ,इसरो , भाभा परमाणू अनुसन्धान केंद्र  अमेरिकी कंपनियों के साथ सहयोग कर सकेंगे , साथ ही भारत की यात्रा पर आए अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारतीय संसद को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता का अनुमोदन भी  किया | ओबामा के अनुसार ही ‘21वीं सदी में भारत और अमरीका की साझेदारी को नकारा ही नहीं जा सकता है. दो बड़ी शक्तियां, दो बड़े लोकतंत्र की दोस्ती अवश्यंभावी है और यही 21 वीं सदी की दिशा तय करेगी. दोनों देशों के हित एक जैसे हैं.’’| राष्ट्रपति ओबामा ने तो भारत को बड़ी शक्ति मान लिया है लेकिन क्या अमरीका की जनता और बाकी दुनिया ओबामा की राय से इत्तेफ़ाक़ रखेगी ये एक बड़ा सवाल है |

                                          
अमेरिका के साथ कायम होते इन नए संबंधो के दरमियाँ एक ही बात है जो खटकती  है " दगाबाज़ छवी वाले अमेरिका पर भारत का भरोसा  कितना कारगर साबित होगा ?