क्यों पोंछ देते हो
वेदना के दाग
झकझोर कर स्मृतियाँ
.. प्रात की रश्मियों से
तमी के आँचल से खींच
क्यों बिखरा देते हो
रंग सिन्दूरी
घुलने लगते हैं राग
विहगों के..
कपोलें हटा देती है
पल्लवों के घूंघट
महकता है उपवन..
नित्यप्रति , इसी क्षण
गूंजने लगता है
संगीत सा कुछ ..
मेरे सूखे कोरों से फिर
घुमड़ -घुमड़
झरता है घन.....
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