alka awasthi
समय कहाँ भर पाता घाव
वो तो बड़ी सहजता, सुगमता से
कुरेदता सपने...
समय अक्खड़ -अडिग
मुस्कुराता उसी ठौर
जहाँ बिखरे पड़े हों सपने ..
समय बुनता चक्र
हम अदने से फंसते
जाल में..
समय बेचारा सा
हो जाता बेबस
जब उसकी दी चोट के बावजूद
उठ खड़ा होता कोई
सुनो हे समय
मेरे दर्द की दवा
पूँछूँगी तुम्ही से
एक बारगी ही सही
कहीं मिलो तो मुझसे ....
समय कहाँ भर पाता घाव
वो तो बड़ी सहजता, सुगमता से
कुरेदता सपने...
समय अक्खड़ -अडिग
मुस्कुराता उसी ठौर
जहाँ बिखरे पड़े हों सपने ..
समय बुनता चक्र
हम अदने से फंसते
जाल में..
समय बेचारा सा
हो जाता बेबस
जब उसकी दी चोट के बावजूद
उठ खड़ा होता कोई
सुनो हे समय
मेरे दर्द की दवा
पूँछूँगी तुम्ही से
एक बारगी ही सही
कहीं मिलो तो मुझसे ....
समय नहीं देता घाव
ReplyDeleteसमय नहीं भरता घाव
घाव विश्वास,मासूमियत,से होते हैं
समय की ऊँगली थामकर
मन मरहम लगाता है