अतीत की महक ...
alka awasthi
फैला कर बाहें प्रेम की
जाने कितनी बार
स्पर्श कर चुकी हूँ
चौखटों को अतीत की
ले आती हूँ धूल मुट्ठी भर
बनाती हूँ तूलिका
तुम, मैं, और समय
आह ...
काश समझ पाती
नादानियां
समय रहते
तो शायद
मेरा आज
दे पाता मुस्कुराहटें चंद
कि ..
महसूसती मैं भी
महक लाल गुलाल की..
Touching
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