alka awasthi
पलकों के संपुट तले
आंशिया है मेरा
घरौंदा मन का....
चली जाती हूं हर रात
उसे बुहारने
झाड़ने, पोंछने
सुखद है यह अहसास भी....
सहेजा है
कमरेां में
मीठी यादों को
तुम्हारी ठिठोली
तुमसे बतियाना
वो गंगा किनारे पहरों बिताना
चुस्कियां चाय की
गलियों में खो जाना
इठलाना- इतराना
तुम संग कुछ गुनगुनाना
हां बस ...
अब यही नियति है मेरी
सोचती हूं
क्यों नहीं बंद हो जाती
ये मुई पलकें
ऐसे ही सही
अहसास तो रहता तुम्हारा......
सहेजा है
कमरेां में
मीठी यादों को
तुम्हारी ठिठोली
तुमसे बतियाना
वो गंगा किनारे पहरों बिताना
चुस्कियां चाय की
गलियों में खो जाना
इठलाना- इतराना
तुम संग कुछ गुनगुनाना
हां बस ...
अब यही नियति है मेरी
सोचती हूं
क्यों नहीं बंद हो जाती
ये मुई पलकें
ऐसे ही सही
अहसास तो रहता तुम्हारा......
आपके लिंक
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/groups/605497046235414/
यहाँ है ....
आप भी पधारें
ख्वाब में ही सही , तुम हकीकत हो !
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/08/2014 को "कुज यादां मेरियां सी" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1715 पर.
bahut khubsurat rachna ...
ReplyDeleteबहुत बढिया...
ReplyDeleteBahut Sunder....
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबढ़िया व खूबसूरत रचना , आ. धन्यवाद !
ReplyDeleteअगर संभव हो तो -
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~ I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ ~ ( ब्लॉग पोस्ट्स चर्चाकार )
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletegood
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