Monday 7 January 2013

विजन पथ ..




प्रतीक्षा में तुम्हारी
जाने कितने दिव 
नाप डाले सूर्य-शशि  
लौटोगे हे यायावर ?

प्रथम रश्मियों संग 
अधूरा है जो राग 
होगा कभी पूर्ण !

चुक रही है 
हथेलियों में भरी रेत 
समय दौड़ रहा है निर्बाध 
क्या आज भी तुम
रेखाओं  में उलझे हो !

बाहर निकलो 
इस मकड़ जाल से
मैंने सुना है 
बनती-बिगडती हैं 
हाथों  की लकीरें 


बहुप्रतीक्षित है 
भेंट तुमसे ...

साँस चुकने से पहले 
विजन पथ पर
साथ चलोगे न 'मित्र' !




5 comments:

  1. अलंकृत दीप राग
    आशीष और शुभकामनाएं

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  2. वाह ... बहुत सुंदर

    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  3. बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता.

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  4. बाहर निकलो इस मकडजाल से .......उम्दा.....

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  5. बाहर निकलो इस मकड़जाल से ........ उम्दा......

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