Friday 27 May 2011

सपने...



सपने जो पल गए थे
मीठी लोरियों की थापों में
झर झर झर गए
जाने कहाँ सो गए

हलके हांथो से
बांध सुतली जिसमे
पलना झुलाती थी माँ
वो लकड़ी के झूले
टूट गए, बिक गए, कबाड़ हो गए

जिन खिलौनों से खेलता था मुन्ना
आज भी कहीं सहेजे हैं अम्मा
सफ़ेद हो गए हैं मुन्ने के भी बाल
जाने कितने बीत गए हैं साल

अब,
लुढ़की रहती हैं कहीं
किसी खाट पर
डांट खा जाती है
बात बात पर
चेहरे पर झुर्रियां पड़ गयी हैं
आँखें भीतर गढ़ गयी है

टुक टुक निहारती
जाने क्या तलाशती
चेहरे पर दीखते
कई भाव..
दुःख-सुख की अनुभूति लिए

कोरों में चुपके से
छलक आते  हैं कुछ सपने
बनके आंसू  
झट से आँचल में उन्हें
छुपा लेती है

पूछती हैं धीरे से
ए मुन्ना...
गंगाजल अपने हांथों से
पिलाओगे न !

जीवन के बुझते दिए संग 
सपने बुन रही है 
जिन्दगी को ठेलते हुए
जी रही है 

किन्तु  समय ..
कब, किसकी, कहाँ, सुनता है 
वो तो झर-झर निर्झर बहता है
खिलौने टूट चुके हैं 
सपने छूट चुके हैं

आँचल
लहरा कर
आसमान में 
उड़ा जा रहा है
दूर...न जाने कौन
"अम्मा को लोरी सुना रहा है..
अम्मा को लोरी सुना रहा है" ...

1 comment:

  1. munne ke baal safed ho jayen bhale , maa ka pyaar uske liye masoom loriyon sa hi hota hai

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