विचारों का प्रारंभ ........
जब कभी भीड़ से परे
चल पड़ती हूँ , तन्हां रास्तों पे
कुछ यादें बन पुरवाई
घुमड़ने लगती हैं आस -पास
मन.........तय करता है लम्बी दूरी
विचारों के गाँव की
दीखते हैं कई घरौंदे ....
मीठेपन के ....भोलेपन के
कुछ खंडहर ....बड़बोलेपन के .....
एक सोंधी - सोंधी खुशबू है
कुछ अनुपम एहसासों की
चंचल मन भागता है
कभी इस छोर कभी उस छोर
और तभी ......
यादों की पुरवाई
फिर घुमड़ती है पास मेरे
दे जाती है.. मीठी मुस्कान
मन कहता है ,
नहीं हो तन्हा रास्तों पे
अकेली तुम ........
सच है,
मेरे विचारों का ....प्रारंभ हो तुम
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