मन का जाल.......
मन के अंतर्द्वंद को
ख़ामोशी के साथ
छुपाने की कोशिश
अहसासों के आगे हमेशा
पड़ जाती है फीकी ...........
भीतर दहकते अंगारों को
गंभीरता की बरसाती से
ढकने की तुम्हारी योजना
तुम्हारे भावों से
उबलते कोलाहल का
भान करा देती है .........
इतने जतन से तपिश को
संचित क्यों करते हो तुम ?
आँखों के रास्ते
ढरक जाने दो ..........
शायद तुम्हारे मन को
कर दे ...शीतल
मुश्किल से बही ये बूँदे.............
No comments:
Post a Comment