वफ़ा !
वफ़ाओं की बात तो कर जाते हैं लोग,
ज़रुरत पड़ी तो कहाँ निभाते हैं लोग,
ज़रुरत पड़ी तो कहाँ निभाते हैं लोग,
हँसने की तमन्ना लिए फिरते रहे हम,
किस कदर हर कदम पे रुलाते हैं लोग,
दामन बचाने की देते हैं नसीहत,
और उसी दामन पे छीटें लगाते हैं लोग,
दो पल को सुकून मयस्सर होता नहीं,
कैसे-कैसे जन्नत के सपने दिखाते हैं लोग,
तबस्सुम के पीछे दर्द का समंदर सही,
जीने के लिए बस यूँ ही मुस्कुराते हैं लोग !
सुन्दर कविता है, शब्दों का समन्वय भी अच्छा है...आप को इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए साधुवाद...
ReplyDeleteshayad jindagi ki sacchai ko aapne jeekar shabdo me piroya hai.vishal raghuvanshi
ReplyDeletenice ;go on ; BEST of wishes
ReplyDeletewith prayer. yn