alka awasthi
चलती हूं मां
लौटूंगी जल्द ही
ध्यान रखना तुम घर का
मेरी चिन्ता में
आधी हो गई थी तुम भी .....
बड़बड़ाती थी मैं
जाने कैसे
रोकने को आंसू
जो थे आमादा
मां से लिपटकर रह जाने को
मां होती तो
नहीं रोक पाती खुद को
गिरा ही देती नमक
जिसे चखकर
नहीं बचता मेरे पास
कहने को कुछ भी
अपने हर कदम पर
देखती रही मुड़़-.मुड. के
अब नहीं दिखेंगी कभी
वो भरी भारी आंखें
और हिलता हुआ हांथ...
उफ् ये तल्ख अहसास
चिपक जाता है मां से
मां........
तुम्हारा न होना
नभ के उड.ने जैसा है
मानो शाश्वत अनिश्चित हुआ......
चलती हूं मां
लौटूंगी जल्द ही
ध्यान रखना तुम घर का
मेरी चिन्ता में
आधी हो गई थी तुम भी .....
बड़बड़ाती थी मैं
जाने कैसे
रोकने को आंसू
जो थे आमादा
मां से लिपटकर रह जाने को
मां होती तो
नहीं रोक पाती खुद को
गिरा ही देती नमक
जिसे चखकर
नहीं बचता मेरे पास
कहने को कुछ भी
अपने हर कदम पर
देखती रही मुड़़-.मुड. के
अब नहीं दिखेंगी कभी
वो भरी भारी आंखें
और हिलता हुआ हांथ...
उफ् ये तल्ख अहसास
चिपक जाता है मां से
मां........
तुम्हारा न होना
नभ के उड.ने जैसा है
मानो शाश्वत अनिश्चित हुआ......
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति।
ReplyDeleteरक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteमेघ आया देर से ......
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
मार्मिक ... मन को छूता हुआ ... माँ ...
ReplyDeleteमाँ का ना होना जैसे पांव तले जमीन ना होना।
ReplyDelete