उर की विह्वलता
Tuesday, 23 October 2012
जाने क्यूँ .......?
"मुद्दतों
जिन ख्वाबों को बुन
तकिये के लिहाफ पर रख
रूबरू हुए थे
सुकूं से
आज.....
वही ख्वाब
चुभते हैं
और नींद....
कोसों है दूर
खिझाती सी
जाने क्यूँ ......."
1 comment:
Anonymous
17 December 2012 at 07:28
बहुत खूब - भुलाना ही बेहतर होगा
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