कुछ खास अवसरों पर देखती हूँ
लोग कुछ खास करना चाहते हैं
जाकर तरह-तरह की दुकानों में
बिलकुल अलग कुछ मांगते हैं
जाने कितने रंगों से भरा समंदर
समेटे होता है हर काउंटर
कुछ भी चुन लीजिये साहब
हर तरह के उपहार हैं
कुछ आकृतियाँ, कुछ ग्रीटिंग कार्ड हैं
कुछ पर शिमला-मसूरी-देहरादून हैं
कुछ पर नावें और सतरंगी फूल हैं
कहीं कान्हा के संग राधा है दीवानी
कहीं जंगल बादल और है झरने का पानी
ये मूर्तियाँ हैं फेंगशुई की
घर में खुशहाली लाती हैं
दुकानदार की ये बातें
मुझे परेशान किए जाती हैं
मौन होकर सोचती हूँ
क्या तुम्हें भी ये उपहार पसंद हैं!
गिने चुने अवसरों के बाद जिनका
न कोई रूप है न रंग है
कुछ ऐसा लेना है मुझको
जो महज अवसरों पर नहीं
अकेलेपन, बेरौनक उदासी के समय
तय कर सके लम्बी दूरी
और झट से तुम तक पहुँच कर
साक्षी हो जाए मेरे अपनेपन का
अनोखा साथी मन के सूनेपन का
एक ऐसा उपहार
जिसमें सौहार्द का स्पर्श
आत्मीयता की गंध हो
दिखावट से मुक्त
जो स्वतंत्र हो, स्वच्छंद हो
एक ऐसा उपहार जो तुम्हें
सचमुच पसंद हो..
( यह कविता मैंने अपने एक मित्र के लिए लिखी है जिसका उपहार मुझ पर उधार है..)
उपहार वही जो मुस्कान ला दे
ReplyDeleteउपहार , जिसमें आत्मीयता हो
उपहार - जिसमें अनगिनत खुशियाँ हो
ताजे फूल ही क्यों न हों
पर आँखों में जो कभी न मुरझाएं
अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
ReplyDeleteक्या उपहार भी उधार रखा है, अपनेपन और सूनेपन का साक्षी उपहारण्ण् क्या कहने। अलका जी आपके शब्द और उपमाएं। आपके भाव और अभिव्यक्ति सभी कुछ बस मोह लेती है, या कहूं कि सम्मोहित कर लेती है। बधाई की पाऋ हैं आप;
ReplyDeleteआप ने तो ह्रदय में उड़ रहे विचारो को शब्दों के मोतियों की माला में पिरो दिया . अति सुन्दर
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