भोर होते ही
लगतीं हैं चहकने
जैसे बगीचों में
चहचहाते पक्षी
कानो में घोलते हों
रस मीठा सा .....
वो.... जो हरी घास पर
बिछी थी सुथराई
उनके पैरों से लिपटकर
मचलने सी लगी है
रंभाती गायों के बीच
उनकी खिलखिलाट
अधरों को दे ही देती है
अर्धचन्द्राकार लकीर ..
उनकी अल्हड़ शरारतों के बीच
लौट आता है माँ का बचपन
बेटियां होती हैं ...
चिड़ियों की चहकन जैसी